''दीयें में तेल बहुत था ''

क्या क्या क्या आखिर यह क्या कर दिया एक पल में ही ध्वंश कर दिया सारी खुशियों के फव्वारों को I सारा जीवन कट ही जाता हर पल मैं मुस्कुराता उजियारा मैं फैलता लेकिन पलभर में ही सिमट कर रह गयी जीवन की ज्योति पल पल अब जूझ रही है अब जलने को अपना अस्तित्व बचाने को मानो रिश रहा है अपना ही तेल हर कोनों से I भले भरा हो मैंने तेल से दीये को लूट लूट कर लेकिन ऐसे तो लुटा नहीं सकता इस तेल के दीये को वर्षों से जमा कर रखा है किट पतंगों से बचा बचा कर ख़त्म करके उन सबको फिर भी बचाया इस तेल को भले रहा हो दीयें तले ही अँधेरा फिर भी मैंने उजाला किया क्या मैं नहीं जला इस ऊंचाई तक आने में फिर भी मैं क्यों जूझ रहा हूँ हरपल अपना अस्तित्व बचाने को क्योंकि दीयें में तेल बहुत है II