संदेश

''दीयें में तेल बहुत था ''

चित्र
क्या क्या क्या आखिर यह क्या कर दिया एक पल में ही ध्वंश कर दिया सारी खुशियों के फव्वारों को I सारा जीवन कट ही जाता हर पल मैं मुस्कुराता उजियारा मैं फैलता लेकिन पलभर में ही सिमट कर रह गयी जीवन की ज्योति पल पल अब जूझ रही है अब जलने को अपना अस्तित्व बचाने को मानो रिश रहा है अपना ही तेल हर कोनों से I भले भरा हो मैंने तेल से दीये को लूट लूट कर लेकिन ऐसे तो लुटा नहीं सकता इस तेल के दीये को वर्षों से जमा कर रखा है किट पतंगों से बचा बचा कर ख़त्म करके उन सबको फिर भी बचाया इस तेल को भले रहा हो दीयें तले ही अँधेरा फिर भी मैंने उजाला किया क्या मैं नहीं जला इस ऊंचाई तक आने में फिर भी मैं क्यों जूझ रहा हूँ हरपल अपना अस्तित्व बचाने को क्योंकि दीयें में तेल बहुत है II

" उल्टा पुलटा "

जिसे ग़द्दार कहना था, उसे दिल से लगा बैठे । और जिसे दिल से लगाना था, उसे बहना बना बैठे । जिनसे चुरानी थी नज़र, उनसे नज़र मिला बैठे, और जिनसे निग़ाहों ही निग़ाहों में बात करनी थी, उनको लाल नज़रे दिखा बैठे । जिनसे बात नही करनी थी, उनको हाल-ए-दिल बयां कर बैठे, और जिनसे हाल दिल का बयां करना था, उनसे मुँह फुला बैठे ।l

तुमसे मिलना हुआ

चित्र
  तुमसे मिलना हुआ तुमसे बिछड़ना हुआ  ये इश्क हुआ या कोई सौदा हुआ ll

" तुम्हे हम चाहे "

चित्र
तुम्हे हम चाहे  मरके भी चाहे तुम बेवफा हो  ये किसको बताये    

'' इस नील गगन में ''

चित्र
आजाद पंछी की तरह उड़ती रहो इस नील गगन में शर्माओ बलखाओ पास आओ अटखेलियाँ दिखाकर मन हर्षाओ मधुर कंठ से अपने जीवन की सारी खुशियां तुम बरसाओ पावन कर दो मन और ह्रदय को, जो जीवन की राह न जाने अपने स्वप्निल रूप से मन में प्रेम की ज्योति जलाओ आओ एक बार आओ सुने धरा की इस बग़िया पर अपनी ध्वनि से फिर हरियाली आने का बिगुल बजाओ और चुपके से फिर उड़ जाओ इस नील गगन में II

" तुम्हारी मीठी मीठी बाते "

चित्र
चॉकलेट सी मीठी मीठी लगती है बात तुम्हारी क्यों तुम इतनी मीठी मीठी क्या तुम हो प्रेम मतवाली चॉकलेट सी मीठी मीठी लगती है बात तुम्हारी II प्रेम के वशीभूत होकर नैनों को मटकाती हो जिसपर तुम कृपया क्र देती उसका हर क्षण तुम्हारे प्रति प्रेमातुर हो जाता चॉकलेट सी मीठी मीठी लगती है बात तुम्हारी II तुम मृदुला मेरे हृदय कि तुम ही मेरी जीवन कि दृष्टादृष्ट तुम यूँही मेरे मन को अपनी प्यारी मुस्कान से हर्षाति हो चॉकलेट सी मीठी मीठी लगती है बात तुम्हारी II 

" रूप सुनहरा "

चित्र
रूप सुनहरा देख हुआ यह पागल मन मेरा कभी धरा कभी अम्बर में ढूंढें यह पागल मन मेरा I नित नया नूतन प्रकाश तुम दिखाती हो, तुम्हें अंधेरों में ढूंढें यह पागल मन मेरा I बिना देखें चैन ना आएं रात ना आएं रैना कस्तूरी मृग बन वन वन ढूंढें है यह पागल मन मेरा II

https://www.pehliudaan.xyz/2025/04/blog-post.html

" दिल ढूँढता है तुमको "

'' इस नील गगन में ''